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"जिंदगी की कड़वी सच्चाई: कुछ भी स्थायी नहीं — ना ही लोग, ना ही परिस्थितियाँ।" |
सोचिए, आप एक रेलगाड़ी हैं — लगातार चलती हुई, आगे बढ़ती हुई। आपके रास्ते में कई स्टेशन आते हैं। कुछ स्टेशन बड़े होते हैं, भव्य और सजे-संवरे; वहीं कुछ छोटे होते हैं, गंदगी से भरे, भीड़-भाड़ वाले। जब आप सुंदर और साफ-सुथरे स्टेशन से गुजरते हैं, तो मन प्रसन्न हो जाता है। लेकिन जैसे ही कोई बदबूदार या अव्यवस्थित स्टेशन आता है, वहाँ कुछ पल रुकना भी भारी लगता है।
मगर क्या रेलगाड़ी को ये चुनाव करने की आज़ादी है कि वह किन स्टेशनों से गुजरे और किनसे नहीं? बिल्कुल नहीं। उसका काम है चलना — हर स्टेशन से होकर, चाहे वह कैसा भी हो। जीवन भी कुछ ऐसा ही है।
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हमारी ज़िंदगी की यात्रा में भी कई स्टेशन आते हैं — कभी सुख, कभी दुःख। कभी सफलता, कभी असफलता। कभी किसी का जन्म, तो कभी किसी की मृत्यु। ये सब जीवन के पड़ाव हैं। हम चाहें या न चाहें, इनसे गुजरना ही पड़ता है।
कुछ परिस्थितियाँ हमारे बनाए हुए स्टेशन होते हैं — जैसे अच्छे अंकों से परीक्षा पास करना, नया घर लेना, बच्चे का जन्म। और कुछ स्टेशन कुदरत तय करती है — जैसे किसी अपने को खो देना, बीमारी, या दुर्घटना। लेकिन इन सभी से हमें गुजरना ही पड़ता है, क्योंकि जीवन की यह रेलगाड़ी रुक नहीं सकती।
ध्यान देने वाली बात यह है कि कोई भी स्टेशन स्थायी नहीं होता। रेलगाड़ी वहां ज्यादा देर नहीं रुकती। ठीक वैसे ही हमारे जीवन की सुख-दुख की स्थितियाँ भी स्थायी नहीं होतीं। हम उन्हें पार करते हैं — कभी खुशी से, कभी आंसुओं के साथ। लेकिन अंत में हमें आगे बढ़ना होता है।
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इसलिए, जब अच्छा समय आए — तो उसका आनंद लें, आभार प्रकट करें। और जब बुरा समय आए — तो उसे समझें, सहें, लेकिन उसमें फंसे न रहें। क्योंकि वह भी एक पड़ाव है, स्थायी ठिकाना नहीं।
हमें यह समझना होगा कि परिस्थितियाँ तो बदलती रहेंगी — स्थायी अगर कुछ है, तो हम खुद। हमारा अपना दृष्टिकोण, हमारी सोच, और हमारी आत्मा। इसी पर ध्यान देना ज़रूरी है।
अंततः, यह ज़िंदगी आपकी है, आपकी यात्रा है। आप ही हैं जो शुरुआत से लेकर अंत तक इस रेलगाड़ी के साथ हैं। बाकी सब — लोग, जगहें, घटनाएँ — बस स्टेशन हैं।
इसलिए, रुकिए मत। चलते रहिए। क्योंकि हर स्टेशन के बाद एक नया दृश्य, एक नई सुबह, और एक नई उम्मीद आपका इंतजार कर रही है।
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