आकर्षण का नियम: क्यों हम जिस चीज़ को चाहते हैं, वह हमसे दूर भागती है?

 

आकर्षण का नियम: क्यों हम जिस चीज़ को चाहते हैं, वह हमसे दूर भागती है — चुंबक और विरोधाभास के सिद्धांत पर आधारित प्रेरणादायक चित्र।

हम अक्सर ज़िंदगी में कुछ न कुछ पाने के लिए भागते रहते हैं — प्रेम, पैसा, सम्मान, सफलता। लेकिन जितना हम इन चीज़ों के पीछे भागते हैं, वे हमसे उतनी ही दूर जाती नज़र आती हैं। क्या आपने कभी गहराई से सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? इसका जवाब कहीं न कहीं ब्रह्मांड के एक अटल नियम में छिपा है — आकर्षण के नियम में।


चलिए इसे एक उदाहरण से समझते हैं।

आपने चुंबक (Magnet) देखा होगा। चुंबक धातु को अपनी ओर खींचता है — लेकिन हर धातु को नहीं, केवल उसी को जिसमें चुंबकीय गुण होते हैं। मतलब, वही चीज़ें एक-दूसरे को खींचती हैं जिनमें साम्य या आकर्षण योग्य विशेषताएँ होती हैं।

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पर यहां एक गूढ़ बात छिपी है — चुंबक का नॉर्थ पोल, नॉर्थ को नहीं बल्कि साउथ पोल को खींचता है। यानी विपरीत चीज़ों में आकर्षण होता है। नॉर्थ-प्लस होता है, साउथ-माइनस। प्लस और माइनस के बीच ही ऊर्जा बहती है, जैसे इलेक्ट्रिसिटी भी ऋण आयन से घन आयन की तरफ बहती है। यह नियम सिर्फ भौतिक वस्तुओं पर नहीं, बल्कि हमारे विचारों और इच्छाओं पर भी लागू होता है।


अब इसे हमारे जीवन पर लागू करते हैं।

जब हम प्रेम चाहते हैं, तो हम उसकी कमी को महसूस करते हैं। हम यह सोचते हैं कि “मेरे जीवन में प्रेम नहीं है,” और इसी कमी की भावना में डूबे रहते हैं। नतीजा? हम प्रेम को नहीं, दुख को आकर्षित करते हैं। क्यों? क्योंकि ब्रह्मांड यह नहीं देखता कि तुम क्या चाहते हो, वो यह देखता है कि तुम किस ऊर्जा में जी रहे हो — अभाव या समृद्धि?

यही बात पैसे पर भी लागू होती है। एक अमीर व्यक्ति, जिसके पास करोड़ों हैं, वह भी पैसे के पीछे भागता है क्योंकि वह कमी की भावना में जीता है — उसे लगता है कि “और चाहिए”। इसी कारण वह और पैसे खींच लेता है — क्योंकि वह लगातार पैसे की ऊर्जा में जी रहा है।


अब सवाल है, गरीब क्यों गरीब रहता है?

अगर आकर्षण का नियम कहता है कि समृद्धि कमी की ओर दौड़ती है, तो अमीरी को तो गरीबी की तरफ खिंचना चाहिए। लेकिन होता उल्टा है। गरीब व्यक्ति पैसों की सोच नहीं करता, वह अपनी गरीबी की सोच करता है। वह बार-बार यह दोहराता है, “मेरे पास नहीं है, मैं गरीब हूं।” यही सोच उसकी वास्तविकता बन जाती है।


ब्रह्मांड बहुत सरल भाषा समझता है — ऊर्जा की भाषा।

तुम जो सोचते हो, महसूस करते हो, उसी तरंग में ब्रह्मांड तुम्हारे लिए घटनाएँ बुनता है। इसीलिए अगर तुम किसी चीज़ की "कमी" को महसूस करोगे, तो ब्रह्मांड तुम्हें उसी की और अधिक कमी देगा।


तो समाधान क्या है?

तुम्हें उन चीज़ों की तरह महसूस करना शुरू करना होगा जो तुम पाना चाहते हो। प्रेम चाहिए? तो खुद को प्रेम देने वाला बनो। समृद्धि चाहिए? तो खुद को समृद्ध महसूस करने लगो — चाहे वह भावनात्मक हो, मानसिक हो, या आध्यात्मिक।

जब तुम अपनी ऊर्जा में बदलाव लाते हो, तभी बाहरी दुनिया में बदलाव आता है।


निष्कर्ष:

हम जिसे पाने के लिए भागते हैं, वह हमारी ऊर्जा के कारण हमसे दूर भागता है। इस संसार में कोई भी घटना आकस्मिक नहीं है। आकर्षण का नियम हर स्तर पर काम करता है — विचारों, भावनाओं और कर्मों में भी। इसलिए यदि हम सच में प्रेम, धन, या शांति पाना चाहते हैं, तो पहले हमें अपनी सोच और ऊर्जा को बदलना होगा। जब हम अंदर से बदलेंगे, तभी बाहर की दुनिया भी हमारे अनुसार बदलने लगेगी।


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