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"विचार ही हमारा कर्म है – बुद्ध का शिष्य से संवाद" |
कर्म क्या है? — भगवान बुद्ध की एक कथा
एक बार एक शिष्य ने भगवान बुद्ध से पूछा,
"भगवन, कर्म क्या होता है?"
बुद्ध मुस्कुराए और बोले,
"चलो, मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ।"
बहुत समय पहले एक राजा अपने राज्य में भ्रमण पर निकला था। जब वह एक बाज़ार से गुज़र रहा था, तो अचानक एक चंदन की लकड़ियों की दुकान के सामने आकर रुक गया। वह कुछ देर तक उस दुकानदार को देखता रहा, फिर अपने मंत्री से बोला:
"पता नहीं क्यों, इस दुकानदार को देखकर मुझे ऐसा लग रहा है कि इसे फाँसी पर लटका देना चाहिए!"
मंत्री बहुत हैरान हुआ। उसने पूछा,
"महाराज, आपने ऐसा क्यों कहा?"
राजा बोला,
"मैं नहीं जानता, बस एक अजीब-सी भावना आ रही है।"
अगले दिन, वह मंत्री साधारण वेश में उस चंदन की दुकान पर गया। बातचीत करते हुए उसने दुकानदार से हालचाल पूछा। दुकानदार उदास होकर बोला:
"क्या बताऊँ, व्यापार बिल्कुल ठप हो गया है। चंदन की लकड़ियाँ कोई खरीदता ही नहीं। अब तो ऐसा लगता है कि अगर इस देश का राजा ही मर जाए, तो शायद मेरी लकड़ियाँ किसी के काम आ जाएँ और मेरी हालत सुधर जाए!"
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मंत्री सब समझ गया — यही वह नकारात्मक विचार था जो राजा ने अनजाने में महसूस किया था।
मंत्री बुद्धिमान था। उसने दुकानदार से थोड़ा सुगंधित चंदन खरीदा और अगले दिन राजा के पास पहुँचा। चंदन देते हुए उसने कहा:
"महाराज, यह उसी दुकानदार ने आपके लिए भेजा है, जिसे देखकर आपको उसे फाँसी पर लटकाने का मन हुआ था।"
राजा यह सुनकर चकित रह गया। उसे बहुत बुरा लगा कि उसने उस व्यक्ति के बारे में ऐसा नकारात्मक विचार किया, जबकि वह उसके लिए कुछ भेज रहा था।
राजा ने पश्चात्ताप किया और प्रसन्न होकर उस दुकानदार के लिए सोने के सिक्के मंत्री के हाथों भेजे।
मंत्री फिर से दुकान पर गया और दुकानदार को वह सिक्के देते हुए कहा:
"यह राजा ने तुम्हारे लिए भेजे हैं।"
दुकानदार यह जानकर बहुत खुश हुआ कि राजा ने उसके बारे में सोचा, लेकिन साथ ही उसे शर्म भी आई कि उसने राजा के लिए इतने बुरे विचार सोचे थे।
---
यह कहानी सुनाने के बाद भगवान बुद्ध बोले:
"मन के विचार ही हमारे कर्म हैं, क्योंकि जैसा हम सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। जितने शुद्ध और अच्छे हमारे विचार होंगे, उतना ही श्रेष्ठ हमारा कर्म और हमारा जीवन होगा।"
मंत्री सब समझ गया — यही वह नकारात्मक विचार था जो राजा ने अनजाने में महसूस किया था।
मंत्री बुद्धिमान था। उसने दुकानदार से थोड़ा सुगंधित चंदन खरीदा और अगले दिन राजा के पास पहुँचा। चंदन देते हुए उसने कहा:
"महाराज, यह उसी दुकानदार ने आपके लिए भेजा है, जिसे देखकर आपको उसे फाँसी पर लटकाने का मन हुआ था।"
राजा यह सुनकर चकित रह गया। उसे बहुत बुरा लगा कि उसने उस व्यक्ति के बारे में ऐसा नकारात्मक विचार किया, जबकि वह उसके लिए कुछ भेज रहा था।
राजा ने पश्चात्ताप किया और प्रसन्न होकर उस दुकानदार के लिए सोने के सिक्के मंत्री के हाथों भेजे।
मंत्री फिर से दुकान पर गया और दुकानदार को वह सिक्के देते हुए कहा:
"यह राजा ने तुम्हारे लिए भेजे हैं।"
दुकानदार यह जानकर बहुत खुश हुआ कि राजा ने उसके बारे में सोचा, लेकिन साथ ही उसे शर्म भी आई कि उसने राजा के लिए इतने बुरे विचार सोचे थे।
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यह कहानी सुनाने के बाद भगवान बुद्ध बोले:
"मन के विचार ही हमारे कर्म हैं, क्योंकि जैसा हम सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। जितने शुद्ध और अच्छे हमारे विचार होंगे, उतना ही श्रेष्ठ हमारा कर्म और हमारा जीवन होगा।"
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