![]() |
एक चित्रकार था, जो बहुत सुंदर चित्र बनाता और उन्हें बाज़ार में बेचता था। उसके हर चित्र के बदले उसे लगभग 500 रुपये मिलते थे।
अब वह वृद्ध हो चला था, तो उसने सोचा कि अपना यह हुनर अपने बेटे को सिखा देना चाहिए। उसने अपने बेटे से पूछा, तो बेटा भी तैयार हो गया।
चित्रकार ने अपने बेटे को सिखाया कि चित्र कैसे बनाए जाते हैं, उनमें रंग कैसे भरे जाते हैं और उन्हें बाज़ार में कैसे बेचा जाता है।
बेटे ने मन लगाकर सब कुछ सीखा। कई दिनों की मेहनत के बाद उसने एक चित्र बनाया और अपने पिता को दिखाया।
पिता ने कहा,
“अब तुम इसे बाज़ार में बेचकर आओ।”
बेटा गया, और काफ़ी देर बाद वापस आया। उसने बताया कि चित्र 100 रुपये में बिक गया है। लेकिन वह खुश नहीं था।
Read this;
उसने अपने पिता से कहा,
“आपने मुझे अभी सब कुछ नहीं सिखाया है। कृपया और सिखाइए।”
पिता ने उसे और कुछ नई बातें सिखाईं। बेटा फिर चित्र बनाने बैठा और इस बार बेहतर चित्र बनाकर बाज़ार गया।
इस बार उसका चित्र 300 रुपये में बिका — फिर भी वह संतुष्ट नहीं था।
घर आकर उसने पिता से फिर कहा,
“आप अब भी मुझसे कुछ छुपा रहे हैं। मुझे सब कुछ नहीं आया है।”
इस पर पिता मुस्कुराए और बोले,
“ठीक है, अब मैं तुम्हें कुछ और खास बातें सिखाता हूँ।”
फिर उन्होंने बेटे को और गहराई से कला के गुर बताए।
इस बार बेटे ने एक बहुत ही सुंदर चित्र बनाया और बाज़ार गया। कमाल हो गया — चित्र 700 रुपये में बिका!
वह खुशी से घर लौटा और अपने पिता को 700 रुपये दिए।
पिता बेहद प्रसन्न हुए और बोले:
“अब मैं तुम्हें वह सिखाता हूँ, जिससे तुम 1000 रुपये का चित्र बना सको।”
Read this;
“नहीं पिताजी, अब और नहीं। अब मुझे सब कुछ आ गया है। आपने तो 500 रुपये तक ही बनाए, लेकिन मैं तो अब 700 का चित्र बना चुका हूँ। मुझे अब आपकी ज़रूरत नहीं।”
यह सुनकर चित्रकार मुस्कुराया और शांत स्वर में बोला:
“बिलकुल यही गलती मैंने भी की थी, जब मेरे पिता मुझे 1000 रुपये का चित्र बनाना सिखाना चाहते थे। मैंने भी यही कहा था — कि अब सब कुछ सीख चुका हूँ। और देखो, मैं आज तक 500 पर ही अटका हूँ।”
**“इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ —
ज़िंदगी में कभी सीखना मत छोड़ना,
वरना तुम भी वहीं अटक जाओगे,
जहाँ मैं अटका हूँ।”
---
✨ सीख:
जो सीखने से रुक गया, वह रुक गया।
जो सीखता रहा, वही आगे बढ़ता गया।
0 टिप्पणियाँ