हम सब अपनी ज़िंदगी में कुछ न कुछ चाहते हैं — नए कपड़े, बेहतर घर, बड़ी गाड़ी, ज़्यादा पैसा... लेकिन क्या आपने कभी महसूस किया है कि हम हमेशा उसी के पीछे भागते हैं जो हमारे पास नहीं होता? और इसी भाग-दौड़ में हम उस सुख को खो बैठते हैं, जो हमारे पास पहले से ही मौजूद होता है।
यही से शुरू होता है असली दुःख — जो नहीं है, उसी को लेकर मन व्यथित रहता है।
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🔸 हमेशा कुछ ना कुछ अधूरा लगता है
ज़िंदगी में हम हर पल किसी ना किसी कमी को महसूस करते हैं।
कभी कपड़ों को देखकर लगता है — “काश मेरे पास भी ऐसे ब्रांडेड कपड़े होते।”
कभी किसी की गाड़ी देखकर मन करता है — “काश ऐसी गाड़ी मेरे पास भी होती।”
बस... इसी सोच से दुःख जन्म लेता है।
क्योंकि हम उस चीज़ को अपना दुःख बना लेते हैं जो हमारे पास नहीं है, भले ही वो चीज़ हमारी ज़रूरत भी ना हो।
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🔸 स्वीकार करना सीखो, तभी शांति मिलेगी
चाहतें गलत नहीं हैं, लेकिन चाहतों के पीछे खुद को खो देना गलत है।
हमें अपनी परिस्थितियों को स्वीकार करना सीखना चाहिए।
जैसे —
“आज मेरी ऐसी स्थिति है, इस वक्त मैं जितना कर सकता हूँ, उतना ही करूँगा। भविष्य में जो होगा, देखा जाएगा।”
स्वीकार्यता ही सच्चे सुख की पहली सीढ़ी है।
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🔸 जो खो गया, उसके पीछे मत भागो
कितनी बार हमने सोचा —
"जब पैसे आएंगे, तब मैं खुश रहूँगा... तब मैं मज़े करूँगा..."
लेकिन जब पैसे आए, तब ना वैसी इच्छा बची और ना वैसा वक़्त।
हमने उस वक्त को खो दिया जब हमें सबसे ज़्यादा जीना चाहिए था।
हम उस 'आने वाले अच्छे समय' का इंतज़ार करते रहे…
और जो वर्तमान था, उसे व्यर्थ जाने दिया।
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🔸 अगला साल कभी नहीं आता
हमने अपने जीवन के साल ऐसे ही गँवा दिए —
हर साल ये सोचते हुए कि "अगला साल अच्छा होगा।"
लेकिन वो साल कभी आता ही नहीं।
क्योंकि हर साल हम “भविष्य” में जीते हैं —
और वर्तमान को “अधूरा” मानकर ठुकरा देते हैं।
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🔸 सच्चा सुख अभी में है
आपका परिवार, आपके अपने, आपका आज —
यही असली संपत्ति है।
अगर आप सफल हो भी गए, लेकिन जिन लोगों ने आपको पहचान दी वो ही नहीं रहे — तो क्या उस सफलता का कोई मतलब रह जाएगा?
जो इस समय आपके पास है, वही सबसे बड़ा सुख है।
और जो नहीं है — वो दुःख नहीं, सिर्फ एक भ्रम है।
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🌟 निष्कर्ष
हम अक्सर दुःख को चुनते हैं और सुख को अनदेखा कर देते हैं।
हमें ज़रूरत है अपने आज को पूरी तरह जीने की।
क्योंकि:
“सुख चीज़ों में नहीं होता — वो आपके देखने के नज़रिए में होता है।”
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