क्या बाहरी दुनिया हमें प्रभावित करती है?
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ध्यान से भीतर के भाव जागते हैं — बाहरी दुनिया द्वारा नहीं।” |
असल में कोई भी बाहरी चीज़ अपने आप हमें प्रभावित करने की शक्ति नहीं रखती। जो हमें प्रभावित करता है, वो हमारे भीतर मौजूद है, हमारी भावना है, जो उस चीज़ से जुड़ी हुई होती है। जो हमें आकर्षित करती है और हम उससे प्रभावित हो जाते हैं।
एक उदाहरण से समझिए:
सोचो कहीं खाना लगा है, किसी व्यक्ति को गुलाब जामुन बहुत पसंद है, तो जैसे ही उसके सामने गुलाब जामुन आता है, उसके मुँह में पानी आ जाता है और वह बाकी चीजें छोड पहले गुलाब जामुन लेगा। वह कितने भी गुलाब जामुन खा लेगा क्युकी उसे वह पसंद है,
अब प्रश्न उठता है— उसे गुलाब जामुन क्यु इतने पसंद है?
वास्तव में उसकी स्वाद की स्मृति, उसे खाने की चाहत और गुलाब जामुन खाने से मन की संतुष्टि की भावना सब पहले से ही उसके मन में बनी थी। गुलाब जामुन दिखना तो केवल एक ट्रिगर था, जिससे उसकी अंदर की भावना सक्रिय हो गई।
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भावनाएं ही आकर्षण का कारण हैं:
इससे यही समझ में आता की हमारी भावनाये ही हमे किसी चीज की तरफ कित्ती है या उस चीज से हमें दुर करती है। इसी तरहा से सुख, दुःख, प्रेम, क्रोध – ये सब भी हमारी भावना में ही है जो हमारे भीतर ही छिपे होती हैं और समय समय पर ट्रीगर होके बाहर आती है।
बाहरी दुनिया केवल उन्हें बाहर लाने का काम करती है।
इसलिए जब भी कोई व्यक्ति, परिस्थिति या वस्तू हमें प्रभावित करती है, तो समझी ये कि असल में वह हमारी भीतरी प्रतिक्रिया है।
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“साक्षी भाव में बैठा मनुष्य प्रकृति की गोद में सच्ची शांति पाता है।” |
हमारी असली दुनिया — हमारे अंदर
बाहरी दुनिया बस आइना है। हम जो है वह अंदर से है, हम जो भी बाहर देखते हैं, वो हमारे ही भीतर की विस्तारित छवि है। मतलब वह वास्तव होता ही नहीं, हम जो भितरसे होते महसूस करते है वहीं हमें बाहर दिखता है। जैसे भितर अगर दुनिया के प्रति प्यार है तो बाहर दुनिया अच्छी दिखेंगी और अगर हम भितर ये महसूस करते हैं की, दुनिया बड़ी गंदी है तो बाहर हमें गंदगी ही दिखेगी। सब हमारे भितर है, अगर हम भीतर की दुनिया बदलें, तो बाहर की दुनिया भी अपने-आप बदल जाएगी।
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तो नियंत्रण कैसे पाया जाए?
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“मौन में मिलती है सच्ची शक्ति — भीतर की राह दिखाए।” |
1. ध्यान (Meditation):
ध्यान करने से खुदमें उतरना सिखते है, साक्षी भाव बढ़ता हैं, हम भावनाओं को आते-जाते देखना सीखते हैं। ध्यान से हम खुदको जान सकते हैं।
2. मौन (Silence):
मौन ही सर्वोपरी हैं, जब हम मौन में हो तो किसी बात पर प्रतिक्रिया देना बंद कर देते हैं। इससे हम उस चीज़ को महत्व देना भी छोड़ देते हैं, जो हमें तकलीफ देती है।
3. सम्यक दृष्टि (Right View):
हर चीज़ को जैसा है, वैसा देखना। न ज़्यादा उम्मीद, न ज़्यादा नफरत। बस एक साक्षी भाव रखना ही सम्यक दृष्टी है।
4. सम्यक वाचा (Right Speech):
कम बोलना, सही बोलना और केवल वही बोलना जो जरूरी हो।
निष्कर्ष:
हमारी असली शक्ति भीतर की जागरूकता में है।
कोई भी चीज़ बाहर से हमें हिला नहीं सकती, जब तक हमारे भीतर उसकी अनुमति न हो।
इसलिए यदि हम अपने भावनाओं पर ध्यान देना, उन्हें पहचानना और सही दिशा में नियंत्रित करना सीख जाएं — तो पूरी दुनिया को बदलना हमारे हाथ में होगा।
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