ज़िंदगी में हम सभी कुछ न कुछ पाने की चाह रखते हैं। कभी सफलता, कभी धन, कभी प्रेम, कभी शांति। हम लगातार प्रयास करते हैं, मेहनत करते हैं, सपने सँजोते हैं। लेकिन क्या आपने गौर किया है कि कई बार बहुत कोशिशों के बावजूद हमें मनचाहा फल नहीं मिलता? और कभी-कभी बिना ज़्यादा प्रयास के अचानक सबकुछ हमारे सामने आ जाता है।
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| “सपनों की तलाश में निकल पड़ा लड़का, हर पत्थर में उम्मीद खोजता हुआ।” |
असल में, यह केवल हमारी मेहनत का फल नहीं होता। इसके पीछे ब्रह्मांड की एक गहरी व्यवस्था काम करती है। ब्रह्मांड हमेशा हमारी परख करता है—क्या हम उस उपहार को संभालने के योग्य हैं? क्या हमारे भीतर धैर्य है? क्या हमारे भीतर विश्वास है?
हम अक्सर तैयार रहते हैं पाने के लिए, पर ब्रह्मांड तैयार नहीं होता। और जब ब्रह्मांड हमें देने के लिए तैयार होता है, तब तक हम थककर हार मान लेते हैं। यही सबसे बड़ी त्रासदी है।
इसी गूढ़ सत्य को आप इस कहानी के जरीए समझ सकते है—
कथा: पारस पत्थर
एक गाँव में एक गरीब लड़का रहता था। सपने उसके बड़े थे लेकिन गरीबी उसके पाँव बाँध देती थी। एक दिन उसने सुना कि कहीं “पारस पत्थर” होता है, जो लोहे को छूते ही सोना बना देता है। उसके मन में विचार आया—“अगर यह पत्थर मुझे मिल जाए तो मेरी सारी मुश्किलें खत्म हो जाएँगी।”
उसने अपनी कमर में लोहे की एक पट्टी बाँधी और निकल पड़ा पारस की तलाश में। जहाँ भी उसे कोई पत्थर मिलता, वह उसे लोहे की पट्टी से टकराकर देखता।
शुरुआती दिनों में उसमें असीम उत्साह था। हर पत्थर को उठाता, जाँचता और आगे बढ़ता। लेकिन समय के साथ उसका जोश कम होने लगा। दिन महीने में, महीने सालों में बदल गए। अब वह बस आदत से पत्थर उठाता और पट्टी से लगाता, मगर ध्यान ही नहीं देता कि नतीजा क्या है।
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| “सालों की मेहनत के बाद भी कुछ न पाने की पीड़ा।” |
एक दिन थका-हारा वह पेड़ के नीचे बैठ गया। मन ही मन सोचने लगा—“इतने साल बर्बाद कर दिए, आखिर पाया क्या?” तभी उसकी नज़र अपनी कमर पर गई और वह चौंक उठा। जो लोहे की पट्टी उसने सालों पहले बाँधी थी, वह अब सोने की बन चुकी थी!
लेकिन अफसोस… जब ब्रह्मांड ने देने का समय तय किया, तब तक उसके भीतर देखने की सजगता और उत्साह ही खत्म हो चुका था।
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| “जब समय सही होता है, मेहनत सोने में बदल जाती है।” |
हमारी हालत भी कुछ ऐसी ही है। हम निरंतर मेहनत करते हैं, प्रयास करते हैं, लेकिन जब सफलता सामने आने ही वाली होती है, तब हम हार मान लेते हैं। और यही सबसे बड़ी भूल होती है।
ब्रह्मांड हमेशा हमसे यही पूछता है—
क्या तुम अब भी विश्वास रखते हो?
क्या तुम अब भी धैर्यवान हो?
क्या तुम अब भी काबिल हो अपने सपनों को सँभालने के लिए?
सफलता, धन, प्रेम, शांति—ये सब तभी मिलते हैं जब हम और ब्रह्मांड दोनों तैयार हों। और इस तैयारी का असली मंत्र है—सब्र और विश्वास।
इसलिए याद रखिए—
कभी हार मत मानिए। क्या पता, आपका लोहा भी अभी सोना बनने ही वाला हो। 🌟
इसे और बेहतर समझने के लिए पढीए:
Medium Article: 👉 Patience Isn’t Waiting… It’s Trusting the Timing of Things



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