परिचय
मनुष्य अक्सर सोचता है — “मैंने यह खो दिया, वह को दिया, यह नहीं पाया, वह नहीं पाया।” पर सत्य यह है कि न तो आपने कभी कुछ खोया था, और न कुछ पाया है। जो कुछ है, वह पहले से मौजूद था। आप बस तो उस क्षण वहां पहुँचे है जब ब्रह्मांड ने चाहा। यह एक ऐसी समझ है जो हमें जीवन की भाग-दौड़ से मुक्त करती है।
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"बीज बोने के बाद फसल अपने समय पर बढ़ती और कटती है—जीवन भी इसी नियम से चलता है।" |
समय — जो सबको संतुलित करता है
ब्रह्मांड का नियम है कि कुछ भी समय से पहले नहीं होता।
बीज जब धरती में डाला जाता है, वह तुरंत वृक्ष नहीं बनता। उसे अँधेरा चाहिए, नमी चाहिए, ऋतु का सही चक्र चाहिए। तब जाकर अंकुर फूटता है।
इसी तरह जीवन का हर अनुभव, हर समझ, हर उपलब्धि — उस समय पर ही घटित होती है। जो पहले से तय है।
ना पहले, ना देर से। उसी समय पर जो पहलेसे तय है।
धीमा होना ही जागरण है
भागता हुआ व्यक्ति कभी स्पष्ट नहीं देख पाता। धूल उड़ती है, दृष्टि धुंधली हो जाती है।
पर जब आप धीमे चलते हो— तब हर चीज साफ दिखाई पड़ती है, सृष्ठी की हर एक चीज, हर सांस, हर क्षण अपनी सच्चाई प्रकट करता है।
लाओ त्से कहते हैं — “सब छोड़ दो, सब अपने आप हो जाएगा।”
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"प्रकृति कभी जल्दबाज़ी नहीं करती, लेकिन समय पर सब कुछ पूरा कर देती है।" |
और यह छोड़ना मतलब बाहरी चीज़ों का नहीं, बल्कि अपनी भीतर की दौड़ का है।
धीमा होना ही पहला ध्यान है।
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आत्म-ज्ञान — बुद्ध की वाणी
बुद्ध ने कहा — “खुद को जानो।”
बुध्द कहते हैं, खुद को जानना ही जीवन है बाहर तो मन की छाया है, इसलिए खुदको जानो। पर यह जानना किताबों या संसार के अनुभवों से नहीं आता। यह भीतर उतरने से आता है। खुद को जानना है तो खुद के भितर उतरना होगा और जब आप भीतर उतरते हो, तो पता चलता है कि दुनिया वास्तव में एक ब्रह्म (माया) है।
वह तब तक सच लगती है जब तक आप उसे सच मानते हो।
पर जब भीतर का प्रकाश जगता है, तब संसार एक खेल-सा प्रतीत होता है, और आप उसके दर्शक बन जाते हैं।
भ्रम से मुक्ति = बंधन से मुक्ति
हमारे सारे बंधन भ्रम से उपजते हैं।
हम मान लेते हैं कि हमें कुछ पाना है, और कुछ खोने का डर भी होता है।
बस यही मान्यता हमें बंधन में बाँध देती है।
पर जब यह समझ आती है कि न तो कुछ खोता है और न ही कुछ नया मिलता है — बस हम उस समय वहां पहुँचते हैं सही समय पर — तब सारे बंधन टूटने लगते हैं।
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"दुनिया भागती रहती है, पर सच्चा संतुलन वही पाता है जो भीतर से शांत रहता है।" |
निरंतर अभ्यास और ध्यान — मुक्ति की कुंजी
सत्य एक बार में नहीं मिलता।
जैसे नदी लगातार बहकर पत्थरों को काट देती है, वैसे ही निरंतर ध्यान और साधना धीरे-धीरे मन के आवरण हटाते हैं।
हर दिन थोड़ा-थोड़ा भीतर जाना ही जीवन का तप है।
धीरे-धीरे भ्रम हटता है, और जो बचता है — वही सत्य है।
सत्य जानने के लिए धैर्य आवश्यक है।
धैर्य और कर्म — यात्रा की रीढ़
ब्रह्मांड हर क्षण आपको परखता है।
क्या आप बिना जल्दबाज़ी के आगे बढ़ सकते हो?
क्या आप धैर्य रख सकते हो?
यदि हाँ, तो सही समय पर सब आपके सामने खुलता है।
आपका कार्य है — चलते रहना।
फिर चाहे गति धीमी ही क्यों न हो।
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निष्कर्ष — पहुँचने का रहस्य
जीवन का रहस्य यही है:
कुछ खोया नहीं जाता।
कुछ नया पाया नहीं जाता।
सब पहले से मौजूद है।
हम बस सही समय पर वहाँ पहुँचते हैं।
धीमा हो जाइए, भीतर उतरिए, और विश्वास रखिए — ब्रह्मांड आपको ठीक वहीं ले जाएगा जहाँ आपको पहुँचना है।
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