हमारे भीतर सबकुछ है

  

"आईने में अपने चेहरे को देखता व्यक्ति, जिसमें आधा चेहरा गुस्से और आधा चेहरा प्रेम से भरा है।"
"परिस्थितियाँ तय करती हैं कि कौन-सा रूप बाहर आएगा।"

 हमारे जीवन में जो कुछ भी होता है, वह संयोग से नहीं होता – हर घटना के पीछे एक कारण छिपा होता है। हम हँसते हैं तो भी कारण होता है, हम रोते हैं तो भी कारण होता है। जीवन का सुख, दुख, हर अनुभव, हर भावना और हर प्रतिक्रिया किसी न किसी कारण की उपज है। दरअसल, हमारे भीतर ही सब कुछ मौजूद होता है – राग, द्वेष, लोभ, वासना, प्रेम, घृणा, सफलता, असफलता। पर ये सब तब तक हमारे भीतर रहते हैं जब तक इन्हें बाहर आने का कोई कारण नहीं मिल जाता।


हमारे भीतर का संसार


हर इंसान के भीतर अच्छाई और बुराई दोनों बीज के रूप में मौजूद हैं। वैसे तो हम शांत रहते हैं लेकिन कभी कभी कोई ऐसी परिस्थितिया हमारे सामने आजाती है, जो हमारे भीतर की भावनाएँ बाहर ले आती हैं। कभी गुस्सा आ जाता है, तो कभी करुणा जाग उठती है, तो कभी प्रेम उमड़ पड़ता है। सबकुछ अचानक से हो जाता है। आप देखेंगे 

जब भी हमें कोई आहत करता है, तो हमारा क्रोध जाग उठता है। 

जब कोई प्रियजन सामने आता है, तो उनके के लिए प्रेम बहने लगता है।

जब सामने मुश्किल आती है, तो धैर्य या घबराहट दोनों में से कोई एक सामने आता है।

    इसलिए, हम बाहर जो भी हैं, वह पहले से भीतर है – बस उसे बाहर आने के लिए परिस्थितिया की कारण बनती है।

इसका एक बढीया सा उदाहरण देखते हैं।

"दो लोग सड़क पर बहस करते हुए, एक क्रोध में और दूसरा दुखी नज़र आ रहा है।"
"परिस्थितियाँ हमारी छिपी भावनाओं को जगाती हैं।"


सम्राट अशोक – परिवर्तन का उदाहरण

   इतिहास में सम्राट अशोक इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं।

शुरुआत में सम्राट अशोक बड़ा क्रुर था, उसे चंड अशोक भी कहा जाता था। उन्होंने सत्ता के लिए अपने भाइयों को भी मार डाला। वह कठोर और शक्तिशाली शासक बना और जिस कलिंग राज्य को सम्राट चंद्रगुप्त भी जीत नहीं पाए थे, उसे अशोक ने जीत लिया। जिसमे हजारों लोग मारे गये थे। पर विजयी होने के बाद भी खुश नहीं था। हर तरफ विलाप, दुख देख अशोक विचलित हो उठा और यही कलिंग युद्ध उसके जीवन का मोड़ बना। युद्ध में हजारों लाशें देखकर उसका हृदय पिघल गया। उसके भीतर की करुणा और मानवता जाग उठी और वह पुरी तरहां से बदल गया। फिर उसने बौद्ध धर्म अपना लिया, और जीवनभर नीती, धर्म से राज्य किया। उसके बाद कभी उसने तलवार नहीं उठाई। इस परिवर्तन ने उसे महान अशोक बना दिया।

तो देखा ना आपने कि अच्छाई और बुराई दोनों ही‌ हमारे भीतर हैं, बस परिस्थितियाँ कारण बनती है उसे बाहर आने में। कुछ परिस्थितियां ही ऐसी बनती है जो हमारे अंदर की अच्छाई और बुराई को बाहर लाती है।

“राजसी पोशाक में सुसज्जित सम्राट अशोक सिंहासन पर बैठे हैं, उनके पीछे बुद्ध शांत मुद्रा में खड़े हैं।
“जब सत्ता करुणा से जुड़ती है, तब इतिहास एक नई दिशा लेता है।”


परिस्थितियाँ हमें गढ़ती हैं


इंसान कभी बुरा पैदा नहीं होता। वह अपने भीतर दोनों संभावनाएँ लिए जन्म लेता है – देवत्व की और दानवत्व की।

विपरीत परिस्थितियाँ हमारे लिए एक परीक्षा की तरहां होती हैं। अगर हम कठिन हालात में भी संयम बनाये रखें और विवेक से काम ले, तो हम कैसे भी हो हम बदल सकते हैं। यहीं से हमारी असली ताकत सामने आती है। परिस्थितियां चाहे कैसी भी हो अगर हमारा विवेक जागृत है तो सही और ग़लत को पहचान‌ कर हम सही निर्णय ले सकते हैं कि हम किसे बाहर लाए अच्छाई या बुराई को।‌ हा यह हम तय कर सकते हैं।


कारण ही सृष्टि का आधार है


हम कारण से ही इस दुनिया में आए हैं और कारण से ही इस दुनिया से जाएंगे।

कारण है तो सृष्टि है।

कारण है तो भावनाएँ हैं।

कारण है तो जीवन की गति है।

जिस दिन हम समझ जाएंगे कि हमारी जिंदगी की हर घटना, हर भावना, हर परिवर्तन का कोई न कोई कारण है, उसी दिन जीवन को हम सहजता से स्वीकार करना सीख जाएंगे।

निष्कर्ष

हमारे भीतर जो भी है, वही हमारी पहचान है। परिस्थितियाँ केवल उसे जगाने का काम करती हैं। हम किस तरह प्रतिक्रिया देते हैं, वही हमारी नियति और भविष्य तय करता है। इसलिए विपरीत हालात में भी शांत रहना और सही निर्णय लेना ही हमारे भीतर के श्रेष्ठ रूप को बाहर लाता है।

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