![]() |
"जब मन उलझा होता है, तो ध्यान ही उसका समाधान होता है" |
भ्रम, डर और मन की सच्चाई: समाधान की ओर एक दृष्टि
🔹 हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही देखना शुरू कर देते हैं
जब हम किसी वस्तु या व्यक्ति की ओर देखते हैं, तो केवल आंखें नहीं देखतीं — हमारा मन सक्रिय हो जाता है। अगर पहले से कोई धारणा बनी हुई है, तो वही बाहर आ जाती है और हम उसी दृष्टिकोण से चीज़ों को देखने लगते हैं।
सकारात्मक सोच से दृष्टि निर्मल रहती है, जबकि नकारात्मक सोच भ्रम और उलझन को जन्म देती है।
Read this
---
🔹 जब मन हमारे नियंत्रण में नहीं होता
चीज़ें जैसी हैं, वैसी ही होती हैं — लेकिन हमारा मन जब असंतुलित होता है, तो हमें वह वैसा नहीं दिखता।
इस भ्रम में हम अक्सर परिस्थिति को ज़्यादा गंभीर मानने लगते हैं। और यदि नकारात्मक विचार हावी हैं, तो यह भ्रम डर और बेचैनी का रूप ले लेता है।
---
🔹 ऐसे में क्या करें? मौन रखें, प्रतिक्रिया नहीं
जब मन उलझा हो और समझ नहीं आ रहा हो कि क्या करना है — तब सबसे पहला कदम है: मौन।
जिस विषय पर स्पष्टता न हो, उस पर बात नहीं करनी चाहिए।
नकारात्मक बातों की पुनरावृत्ति से मन उन्हें सत्य मानने लगता है।
मौन हमें भ्रम से बाहर लाता है और स्पष्ट सोचने की शक्ति देता है।
Read this;
---
🔹 डर का असली चेहरा
डर हमेशा अज्ञानता और भ्रम की कोख से जन्म लेता है।
हमारे अधिकांश डर केवल कल्पना होते हैं — वास्तविकता में उनका कोई अस्तित्व नहीं होता।
जैसे-जैसे स्पष्टता आती है, डर स्वतः विलीन होने लगता है।
Read this
---
🧘♂️ निष्कर्ष: स्पष्टता ही समाधान है
भ्रम, डर और नकारात्मकता — ये सभी मन की अशांति के लक्षण हैं।
जब हम स्पष्टता की ओर बढ़ते हैं, तो भीतर स्थिरता आती है।
मौन, आत्मनिरीक्षण और जागरूकता ही हमारे सबसे बड़े सहायक हैं।
❝ जो बात स्पष्ट नहीं है, उस पर मौन रहना ही सच्ची बुद्धिमत्ता है। ❞
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें