मंगलवार, 24 जून 2025

जब मन नकारात्मक हो तो मौन ही उपाय है

झील के किनारे ध्यान में बैठा व्यक्ति, बैकग्राउंड में 'जब मन नकारात्मक हो तो मौन ही उपाय है' लिखा हुआ"
जब मन नकारात्मक हो जाए, तब मौन रहना ही भीतर की शांति को जगाने का सरल उपाय है।


 मन की शांति कैसे पाएँ

हम जो कुछ भी देखते हैं, उसे हमारा मन अपने अनुभव और धारणा के अनुसार अर्थ देता है। अगर मन नकारात्मक अवस्था में है, तो वही वस्तु, व्यक्ति या घटना हमें नकारात्मक ही प्रतीत होती है। ऐसे समय में मन केवल दोष, कमी और खतरे ढूंढता है। उस समय बोलना या प्रतिक्रिया देना स्थिति को और जटिल बना सकता है। इसलिए ऐसे समय पर मौन रहना ही बुद्धिमानी है।

मौन का महत्व

मौन का अर्थ पलायन नहीं है, बल्कि यह एक सजग दृष्टा बनने का पहला कदम है। जब हम केवल देखना शुरू करते हैं — बिना बोले, बिना प्रतिक्रिया दिए — तो मन धीरे-धीरे शांत होने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मन को अपनी धारणा को मजबूत करने के लिए हमारी भागीदारी चाहिए। जितना हम उसके अनुसार बोलते हैं, प्रतिक्रिया देते हैं, उतना ही मन उस विचार को और मज़बूत करता है।

नकारात्मक विचारों पर नियंत्रण

यदि हम देखना जारी रखें, परंतु उसके बारे में सोचना या बोलना बंद कर दें, तो मन धीरे-धीरे अपना ध्यान उस विषय से हटा लेता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अब उसे उसे "संभालने" या "न्यायसंगत ठहराने" के लिए हमारा समर्थन नहीं मिल रहा। मौन इस प्रक्रिया को तोड़ देता है।

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आत्मनिरीक्षण के उपाय

हम इसे अपने दैनिक जीवन में कई बार अनुभव करते हैं। मान लीजिए कोई हमें गुस्से से देखता है — हम तुरंत गुस्सा महसूस करते हैं क्योंकि हम अंदर ही अंदर कहने लगते हैं, "ये मुझे ऐसे क्यों देख रहा है?" और वहीं से गुस्से की आग भड़कती है। लेकिन यदि हम उस निगाह को केवल देखें, उस पर प्रतिक्रिया न करें, तो वह भाव खत्म हो सकता है।

मन को कैसे समझें

झगड़ों में भी यही देखा गया है — जब बहस तेज़ होती है, तो लोग एक-दूसरे को "चुप" कराना चाहते हैं, ताकि बात और न बढ़े। क्योंकि बोलना, चाहे मन में हो या मुख से, आग में घी डालने जैसा है।

मनोविज्ञान और मौन

इसीलिए सोच-समझ कर बोलना चाहिए। हर विचार को तुरंत शब्द देना जरूरी नहीं। कुछ भावनाएं बहुत तीव्र होती हैं — वे हमें बोलने के लिए मजबूर करती हैं। लेकिन अगर हम ज़रा ठहर जाएं, मौन रहें, तो वे भावनाएं भी अपने आप शांत हो जाती हैं।


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आजकल हम अक्सर दूसरों की बुराइयाँ करते हैं, चुगली करते हैं, दूसरों की गलतियां गिनाते हैं। इससे हमारे मन में नकारात्मक भाव पैदा होते हैं और हमारा आंतरिक तापमान (मन का ताप) बढ़ जाता है। यह मानसिक अशांति का कारण बनता है। जितनी बार हम बुरा बोलते हैं, उतनी ही बार हम अपने भीतर का संतुलन खोते हैं।


अंत में:


जब मन असंतुलित हो, जब भावनाएं उमड़ रही हों — बस देखिए, सुनिए, लेकिन मौन रहिए। मौन कोई कमजोरी नहीं, यह एक शक्ति है — जो मन को संयमित करती है, और आत्मा को शुद्ध करती है।


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