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“हम वही सीखते हैं जो हमें सिखाया जाता है — और वही हमारी दिशा तय करता है।” |
अक्सर कहते हैं — “ये मेरी किस्मत में ही लिखा था…मिल गया”
लेकिन क्या वाकई ऐसा है? क्या सच में हमारे लिए सब कुछ पहले से लिख दिया है… या हम अपनी नियति खुद गढ़ते हैं?
जन्म के समय हमें कुछ पता नहीं होता, हम खाली स्लेट की तरह इस दुनिया में आते हैं। धीरे-धीरे माता-पिता, रिश्तेदारों, समाज और धर्म से सीखते हैं, और फिर उन्हीं धारणाओं के आधार पर अपना जीवन जीना शुरू कर देते हैं।
यही सीख हमारी सोच बनती है, हमारी सोच हमारे निर्णय बनती है और वही निर्णय हमारी नियति गढ़ते हैं।
लेकिन… क्या सच में हम अपनी नियति खुद लिखते हैं?
चलिए, देखते हैं…
🌱 सीखने की शुरुआत –
जब हम जीवन में आते हैं, हमें कुछ भी पता नहीं होता। हम अपने माता-पिता, रिश्तेदारों, समाज और परिवेश से सीखना शुरू करते हैं। धीरे-धीरे हमारी मान्यताएँ (beliefs) बनती हैं और उसी आधार पर हम सोचने, बोलने और निर्णय लेने लगते हैं।
समझो कि, जैसे कोई बच्चा हिंदू या मुस्लिम परिवार में जन्म लेता है — वह खुद को उसी धर्म से जोड़कर देखता है, उसी परंपरा और विचारों में जीता है। पर क्या सच मे कोई धर्म उसकी स्थायी पहचान है, या परिस्थितिजन्य विकल्प है। जन्म का स्थान चुनना ये हम तय करते है या हमारे कर्म। वैसे नियती हमारे जन्म से नहीं बल्कि कर्म से बनती है।
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“हमारा हर चुनाव हमें किसी दिशा में आगे बढ़ाता है।” |
🔄 नियति बदली जा सकती है--
अब मान लीजिए कोई व्यक्ति मुस्लिम परिवार में जन्म लेता और बाद में वह हिंदू धर्म अपनाता है — तो उसके नाम, समाज, परंपराएँ, पहचान सब बदल जायेगी। मतलब जो पहले था अब वह पुरी तरहां से बदल जाएगा।
इससे एक बात साफ होती है — नियति कोई पत्थर की लकीर नहीं, इसे किसी भी पल बदला जा सकता है। हमारी सोच और कर्म जिस दिशा में जायेंगे, हमारी नियति भी उसी दिशा में मुड़ मुड़ जायेंगी।
🧠 मन और धारणाएँ –
हमारा मन अक्सर हमारी धारणाओं चलता है।
वह जिसे पसंद करता है उसकी तरफ दौड़ता है, और जिसे नापसंद करता है उससे दूर भागता है। हम बिल्कुल जागृत नहीं होते, कभी सवाल नहीं पुछते की अखीर ऐसा क्यों? जब तक हम उससे पुछेंगे नहीं, तब तक मन ही हमारी नियति लिखता रहेगा — और हम अनजाने में उसके पीछे चलते रहेंगे।
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⚖️ कर्म और विकल्प –
हमारे बीते कर्म हमारी वर्तमान सोच को प्रभावित करते हैं, और आज के कर्म हमारे भविष्य को गढ़ते हैं।
बीते हुए कर्म को तो नहीं बदला जा सकता, लेकिन आज के हमारे निर्णय हमारे कल की दिशा जरूर तय करते है।
जैसे कि— अगर एक मोटा व्यक्ति केवल कहता रहे “मुझे पतला होना है” लेकिन कोई कदम न उठाए, तो उसका कुछ बदलेगा?
पर अगर वह जिम जाना शुरू करे, आहार को सुधारे, मेहनत, व्यायाम करे, अच्छी जीवनशैली अपनाये — तो पतला होना फिर उसकी नियति बनने लगेगी।
🌄 निष्कर्ष –
हम अक्सर कहते हैं — “मेरी नियति में यही लिखा था।”
असल में हुआ यह कि हमने उसी दिशा में कदम रखा, इसलिए वही नियति बन गई।
👉 जब सोच बदलेगी, कर्म बदलेगा
👉 जब कर्म बदलेगा, परिणाम बदलेगा
👉 और जब परिणाम बदलेगा, नियति भी बदल जाएगी।
इसलिए अपनी नियति किसी और को सौंपने के बजाय, अपनी कलम खुद संभालिए — हर विचार, हर निर्णय, हर कदम उसी पृष्ठ पर लिखा जा रहा है जिसे कल आप “भाग्य” कहेंगे।
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