शनिवार, 28 जून 2025

ज़िंदगी भागना नहीं, जागना है: रिश्तों और समय की अस्थिरता पर एक गहरी सोच

 

“सूरज की रोशनी में अकेला चलता इंसान — सोच में डूबा हुआ”

कभी सोचा था ये रिश्ता हमेशा रहेगा... पर वक़्त के साथ सब बदल गया।


रिश्ते कितनी तेज़ी से बदलते हैं ना?
जो कल तक साथ थे, वो आज साथ नहीं — और जो आज साथ हैं, क्या कल होंगे, ये भी तय नहीं।
मतलब ये कि इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है।
न रिश्ते, न हम, न हमारी इच्छाएँ... हम खुद भी तो बदलते रहते हैं।

हमारी परिस्थितियाँ लगातार बदल रही हैं, और ये सब हमारे सामने हो रहा है —
पर हमारे पास इसे देखने का समय नहीं है, क्योंकि हम बस भाग रहे हैं...

जिस दिन थक कर रुकेंगे, तब सोचेंगे:
"अरे, हम तो बहुत दूर आ गए..."


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🌿 एक बचपन की याद


मुझे याद है, बचपन में एक परिवार था, जिनसे हमारा बहुत आना-जाना था।
हम उनके घर जाते थे, वो हमारे घर आते थे — बिल्कुल पारिवारिक रिश्ता था।
मैं छोटा था, लेकिन एक दिन मेरे मन में ख्याल आया:
"क्या ये रिश्ता हमेशा यूँ ही बना रहेगा?"

समय बीता, हम बड़े हुए... और वो रिश्ता धीरे-धीरे कम होता गया।
ना कोई झगड़ा हुआ, ना कोई मनमुटाव —
बस धीरे-धीरे, अनजाने में, खामोशी से एक-दूसरे से दूर हो गए।

आज न हम उनके घर जाते हैं, न वो हमारे...
यही तो ज़िंदगी है।


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🐂 हम सब 'बैल' हैं इस व्यवस्था के


एक बैल जीवनभर मेहनत करता है, बोझ उठाता है —
और फिर एक दिन उसे किसी कसाई को बेच दिया जाता है।

हमारा हाल भी कुछ ऐसा ही है —
बस फर्क इतना है कि हमें किसी कसाई को नहीं बेचा जाएगा,
लेकिन हर दिन हमें धीरे-धीरे काटा जरूर जाएगा।

सोचना ज़रूरी है —
क्योंकि जो भागता है, वो थकता है।
जो चलता है, वो कहीं न कहीं पहुँचता है।

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🐢🐇 कछुए और खरगोश की कहानी सुनी है न?


हम न ज़िंदगी जी रहे हैं, न रिश्ते —
हमें तो बस "कहीं पहुँचना" है...
पर कहाँ? ये किसी को नहीं पता।


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🌅 ज़िंदगी भागना नहीं, जागना है


हर सुबह के साथ जागना है, और हर रात से पहले जिन्हें हमसे कुछ चाहिए — उन्हें समय देना है।

हम कल को नहीं जानते।
हमारे पास जो है, वो सिर्फ़ आज है।


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💬 आपके लिए एक सवाल:


क्या आपने भी कभी ऐसा रिश्ता खोया है — बिना किसी लड़ाई या वजह के?

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