हमारी पहचान – हम सच में कौन हैं?

  

“एक बच्चा बड़े आदमी में बदल रहा है, उसके चारों ओर नाम, धर्म और समाज के प्रतीक उभर रहे हैं।”
“जन्म से लेकर बड़े होने तक — हम अपनी पहचान उन्हीं लेबल्स से बनाते हैं जो हमें दिए जाते हैं।”

 जब हम इस दुनिया में आते हैं, हमें एक नाम दिया जाता है — और धीरे-धीरे उस नाम के साथ परिवार, समाज और धर्म के लेबल हमारे उपर लगा दिये जाते हैं और फिर वही हमारी पहचान बन जाती है। कभी रुके हैं यह सोचने के लिए कि “हम सच में कौन हैं?”

इस सवाल का उत्तर शायद किसी के पास नहीं।

क्योंकि हम जिस पहचान में जीते हैं, उसी के इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं —

हम उसी पहचान के साथ जीना शुरू कर देते हैं…और हमारी यह पहचान मरते दम तक बनी रहती है।

पर क्या सच में यही हमारी असली पहचान है?


शरीर से परे कौन है “मैं”?

“एक व्यक्ति सोच में डूबा है, उसके पास मन का प्रतीक धुंधला रूप दिख रहा है।”
“हमारी पहचान वही बनती है — जैसा हमारा मन सोचता है।”


हम अक्सर सोचते हैं कि जो आईने में दिखता है — वही मैं हूँ।

पर असल में, इस शरीर को ही हम सबकुछ मा‌न लेते है — जो की कभी न कभी तो नष्ट होगा।

पर इस शरीर के भीतर कुछ तो ऐसा है जो लगातार अनुभव कर रहा है — जो महसूस करता है, सोचता है, निर्णय भी लेता है। यह वही है जीसे हम मन कहते है— जो हर पल प्रतिक्रिया देता है,जो हर पल सक्रिय रहता है। जो कभी दया दिखाता है, तो कभी क्रोध से भर जाता है,

कभी प्रेम जगाता है तो कभी ईर्ष्या…

वह विचारों को पकड़कर हमें उनमें डुबो देता है।

पर क्या मन हमारा असली स्वरूप है?


मन हमारी पहचान नहीं है


नहीं वास्तव में मन हमारी पहचान नहीं बस वह केवल एक साधन है, इस दुनिया को देखने का, समझने का— जो विचारों से बना है और उन्हीं पर चलता है।

पर हम न तो मन हैं और न ही विचार।

हम वास्तव में दृष्टा हैं — जो इन सबको देख रहा है , अनुभव कर रहा है।

तो हमें चला कौन रहा है? वह है हमारा दृष्टिकोण, जो हमें आगे बढ़ा रहा है, यही दृष्टिकोण हमें बनाता है, गिराता है, और फिर उठाता है। जैसा दृष्टिकोण होगा, वैसी ही हमारी जीवन-यात्रा होगी। वही हमारी सच्ची पहचान है।


दृष्टिकोण से बनती है हमारी पहचान


जीवन में जो व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में भी शांत रहता है,

जो कठिनाइयों के बीच भी मुस्कुराना जानता है —

वह वही देख रहा है जो उसका दृष्टिकोण दिखा रहा है।

कोई हर स्थिति में अवसर देखता है,

तो कोई हर चीज़ में समस्या।

अंतर बस दृष्टिकोण का है।

जैसा दृष्टिकोण होगा, वैसी ही हमारी जीवन-यात्रा होगी।

सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति गिरकर भी उठता है,

जबकि नकारात्मक सोच वाला बिना गिरे ही हार मान लेता है।


महान लोगों से सीख


इतिहास के सभी महान लोग — बुद्ध, गांधी, अशोक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर या किसी भी युग के प्रेरक व्यक्ति —

कभी परिस्थितियों से नहीं डरे।

वह बस अपना काम करते रहे, आगे बढ़ते रहे। सफलता या असफलता उनके लिए अंतिम नहीं थी —

सफलता या असफलता उनकी प्राथमिकता नहीं थी,

यात्रा को पुरा करना उनके लिए उद्देश्य था।

“एक व्यक्ति ऊँचाई से नीचे देख रहा है, सोचपूर्ण भाव से दुनिया को समझने की कोशिश कर रहा है।”
“हम जैसा देखते हैं, वैसा ही बन जाते हैं — पहचान हमारी दृष्टि में ही छिपी है।”


समापन


जीवन का सूत्र यही है —

“बस आगे बढ़ते रहो, चाहे कुछ भी हो।”

संघर्ष जितना बड़ा होगा, उपलब्धि उतनी ही महान होगी।

यदि दृष्टिकोण सही है, तो हर राह सही दिशा में ले जाएगी।

हो सकता है सफलता तुरंत न मिले — पर मिलेगी जरूर।

याद रखो —


"आज का तुम्हारा दृष्टिकोण, कल की तुम्हारी पहचान है"।

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